Monday, 17 September 2012

सोच सखी क्या होगा ...


सोचा तो अच्छा है पर सच कह दूँ
सब्जी के बाजार में लगी है आग ..
ब्रांडेड कपड़े ख्वाब हुए है कार का रह गया नाम |
दालहों गयी नब्बे रूपये, लौकी रूपये चालीस
एक दवा सब्जी केजैसी बिके सैकडा दाम
सोच जरा कैसे होगा अब रसोई का काम |
गैस की जगह चूल्हा पर लकड़ी नहीं मिलेगी
कोयले के भंडार अधूरे, खादी की ऊँची जात
सोच भला कैसे होंवे घर की पूरी बात |
सोना गहना कहाँ रह गया, बेटी ब्याह्वेंगे खाली हाथ
सास ससुर मारेंगे ताना भूखे घर से आई
सोच सखी क्या होगा कैसे मिले दामाद |.-- विजयलक्ष्मी 

1 comment:

  1. महंगाई के दर्द की एक गृहणी की ओर से हृदयभेदी अभिव्यक्ति !!
    वैसे तो महंगाई का शोर बचपन से ही सुनते आ रहे हैं किन्तु अब यह शोर कानफोडू हो गया हैं.

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