है कठिन किन्तु अबूझ कैसे कहूँ ..
द्रोंण को भी खुद को बदलना तो पडेगा ...
वैश्यों की दुकानों का स्वरूप बदलना ही पडेगा
हाँ , दलालों की दलाली भी खता छोटी तो नहीं है
तितलियों से चमकता बाज़ार है
ह्लालों को भी तलवार भांजनी होगी
टोपियो सर की नहीं सर बदलने चाहिए
खड़े अगली कतार में नट बदलने चाहिए
एकलव्य औ अर्जुन को गले मिलना ही होगा
गर समस्या मिटानी है तो ढूंढनी है राह नई ..
अपनी बस्ती को स्वच्छ करने की चाह नई
हमीं पिसते है पर बोलते कब है
सब कुछ सामां बराबर तौलते कब है
मापते कलदार जेब में किसके कितने
सरस्वती को हाथ दलालों को बचतें क्यूँ हो
धार गंडासों की तेज होनी चाहिए
वैश्या बनादी शिक्षा भड़वा समाज हों गया
हर एक हाथ अपना अपना जुदा सा हों गया
प्यास दिल में लगी तो सोचना क्या
नफरतों की आग बुझनी चाहिए
नीतिया राज की ही नहीं दिलों की भी बदलनी चाहिए
हाशिए पे खड़े सरों को आगे आना चाहिए
शब्दोंभेदी बाण तर्कस से निकलना चाहिए ..
सोते हुए शेरों को अब तो जगना चाहिए ..-- विजयलक्ष्मी
गर समस्या मिटानी है तो ढूंढनी है राह नई ..
अपनी बस्ती को स्वच्छ करने की चाह नई
हमीं पिसते है पर बोलते कब है
सब कुछ सामां बराबर तौलते कब है
मापते कलदार जेब में किसके कितने
सरस्वती को हाथ दलालों को बचतें क्यूँ हो
धार गंडासों की तेज होनी चाहिए
वैश्या बनादी शिक्षा भड़वा समाज हों गया
हर एक हाथ अपना अपना जुदा सा हों गया
प्यास दिल में लगी तो सोचना क्या
नफरतों की आग बुझनी चाहिए
नीतिया राज की ही नहीं दिलों की भी बदलनी चाहिए
हाशिए पे खड़े सरों को आगे आना चाहिए
शब्दोंभेदी बाण तर्कस से निकलना चाहिए ..
सोते हुए शेरों को अब तो जगना चाहिए ..-- विजयलक्ष्मी
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