Thursday, 6 September 2012

निर्मल निर्झर वो झरना मेरे घर से बहता है ..

दर्द मेरा क्या लिखूँ जो जी लेती हूँ लिख देती हूँ ,
शब्द और लाऊं कहाँ से  ,छू लेती हूँ ,लिख देती हूँ ,
हाँ ताशे से बजते है ढोल ,कानों को बंद कर लेती हूँ ,
जी लेती होऊँ  वो लम्हा जब दर्द टूट कर बहता है ,
मेरे दरके बराबर से भी एक दर्द का दरिया बहता है , 
तट पर दुनिया बैठी जिसके स्नान रूह का रहता है ,
निर्मल निर्झर सा वो झरना मेरे घर से ही बहता है ,
हाँ टूटते टूटते जिस दिन दुनिया से जाना होगा ....
तब कह देंगे उस खुदा से हम अकेले बिलकुल नहीं है ,
एक फरिश्ता है ,मेरे संग तेरे साथ.... उसी घर में रहता है ,
उससे मुझको मिला एक बार , वह भी मेरा साथ चाहता है .- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment