तलवारें काम नहीं करती अपना ...
खंजरों को उतरना ही पड़ता है मैदान में .
मशाल जलाई तो गलत क्या है ..
चूडियां भी क्रांति करती है हिन्दुस्तान में .
राह खोदी है तो भुगतो उनको ..
तपिश नहीं मिलती कभी यूँ भी ठंडी राख में.
बहुत हुआ खेल चिडिमारी सा ..
उड़ जायेंगे कबूतर संग है फंसे जो जाल में .
जाती है नजर क्षितिज के इतर ..
खंजरों को उतरना ही पड़ता है मैदान में .
मशाल जलाई तो गलत क्या है ..
चूडियां भी क्रांति करती है हिन्दुस्तान में .
राह खोदी है तो भुगतो उनको ..
तपिश नहीं मिलती कभी यूँ भी ठंडी राख में.
बहुत हुआ खेल चिडिमारी सा ..
उड़ जायेंगे कबूतर संग है फंसे जो जाल में .
जाती है नजर क्षितिज के इतर ..
जर्रो को भी माप, माना रौशनी है आफ़ताब में.
कुमुदनी माना रात को खिली ..
कमल दरिया में नहीं,वो खिलता है तालाब में.
रुबाइयाँ गुनगुनाने वाला समझा है ,
मेंढक के टर्राने से बादल बरसते है बरसात में
माना रोशन चिराग हों सोचो तुम ..
फोड़ेगा भाड़ अकेला चना,पढा था किताब में .
सबब चुप्पी तुफाँ भी हों सकता है ..
बोला था ,तलवारे रखी नहीं है अभी म्यान में .--विजयलक्ष्मी
कुमुदनी माना रात को खिली ..
कमल दरिया में नहीं,वो खिलता है तालाब में.
रुबाइयाँ गुनगुनाने वाला समझा है ,
मेंढक के टर्राने से बादल बरसते है बरसात में
माना रोशन चिराग हों सोचो तुम ..
फोड़ेगा भाड़ अकेला चना,पढा था किताब में .
सबब चुप्पी तुफाँ भी हों सकता है ..
बोला था ,तलवारे रखी नहीं है अभी म्यान में .--विजयलक्ष्मी
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