Tuesday, 18 September 2012

हर कोई रूप का पुजारी ...

हद कमाल इंसान दिवालिया हों गया 
उद्देश्य एक सबका लड़की हथियाना हों गया 
ये मानते नहीं वो भी ती जिंदगी है 
उसे भी चाहिए एक बेख़ौफ़ जिंदगी है 
जाने शहर ये सारा क्यूँ वासना का पुजारी 
लड़की क्या दिल से चाहे ....हर कोई रूप का पुजारी ..
सोच उसकी क्या ये जानना नहीं है 
समान से ज्यादा कुछ मानना नहीं है 

भुनाओ जवानी उसकी
कुछ नोट बनाने के वास्ते
बेचते है भावना अपनी रोटी के वास्ते
बहुत बीमार है इंसान दिल ओ दीमाग से
मानता नहीं कि करना इलाज होगा
जो समझेगा ही न दिल को..
उसका क्या भला होगा ...
लड़की को सारे अपनी बपौती मानते हैं
झोली लेके कैसी कैसी दर को छानते है
खुद करने की हिम्मत नहीं है ..............
लड़की को तन को बेचते है
मानसिकता सबकी एक सी ही लगती
कोई बेच खाता है रोटी
कोई रोटी की खातिर बेचता है ...
खुद किसी लायक नहीं
....
इसीलिए -
लड़की पटाओ .....
कह कर समान बेचता है .....-- विजयलक्ष्मी 

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