Sunday, 16 September 2012

ये बंसरी आज क्यूँ बज रही है ..





रंग जितने भाते है मुश्किल पकडना ,
हर गली हर नुक्कड़ से निकलना ,
खुशबू भी दम भर अगर भर ली भीतर ..
चमन के माली का देखो बिगडना ..
खुल के हकीकत जीना ,पुरुषों की दुनिया में ....
समझो आफत गले पड़ गयी है ..
पूछंगे सारे तभी बढ़के आगे ..
ये बंसरी आज क्यूँ बज रही है .-- विजयलक्ष्मी

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