कलम से..
Tuesday, 11 September 2012
हलफनामा ...
मेरी मौत के हलफ नामें पर दस्तखत कर दिए है ,
बस अब फांसी का वक्त मुकर्रर होना बाकी है अभी .
दर्द ए बयाँ किसलिए हों सर ए शाम अब बता मुझको ,
सोच जख्मों पर मरहम लगाने कौन आना बाकी है अभी.- विजयलक्ष्मी
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