जिया है इस कदर तुमको ,मेरा वजूद खो गया .
तन्हाई जब से मिली दिल क्या सावन भी रो दिया .
माना भूल से ही सही प्यार तो मगर कर बैठे ,
पाया तो दिल ने था मगर नजरों ने तुमको खो दिया.
सिमटे है अँधेरे सी परछाई में ही हम तुम्हारी ,
सुखा न दामन अश्क ए लहू ने भिगो जिसको दिया .
गुंचा ए गुल बिखरे है तेरे नाम की है खुशबू ,
अहसास ए चुभन महक से आज पतझड भी रो दिया .
ओढ़ कर कफन तेरी यादों से लबरेज हुआ जो ,
कब्र में हालात देख मेरे आज क्यूँ भला रब भी रो दिया.
-- विजयलक्ष्मी
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