Monday, 17 September 2012

हमे सब चाहिए ...

हम निठल्ले ठाली और क्या हमको चाहिए ,
है कोई खौफ़जदा सहमी सहमी सी जैसे होश में अभी आई हों ,
संबल बनो उसका,जिसे सांत्वना तुम्हारी चाहिए .
है परेशां हाल, कितनी बार.. लडखडाती सी लगी ,
करो मदद ,फेहरिश्त में है, सम्भालों उसे भी ..
हम तन्हां ,बुरा क्या है ,आदत ये पुरानी सी .
राहगीर मिले... बिछड़े ..घनीभूत से बरसे कहाँ 
तैरते रहे खाली डूबेंगे अब कहाँ ,....? 

पीड़ा जन्म ले चुकी है उसकी दुनिया में ,
उलझन भी है औ नाराजगी भी बहुत दिखी .
सरहाना ,शिकायत ,कशमकश ,लहकना ,बहकना ,
मन्तव्य औ गंतव्य सब परिलक्षित है .
सांत्वना भी चाहिए ,सानिंध्य भी देदो उसे .
मेरा है .....वर्ना क्यूँ कर रुकेगा ...
नमी, जमीं को गीली कर चुकी .....लगता है कई बार .
चमन खिलाने की कोशिश में सहरा हुआ जाता है वो .
अंतर्द्वंद है अंतर्द्वंद में.... झलकता उसका.. मुझे भी ,
हम तो हम है ..
हम ..राह ......सफर ...मंजिल ..?
जिंदगी या मौत बस यही है ....बाकी कुछ है तो कह दो ...
तैरते रहे खाली डूबेंगे अब कहाँ ..
पीड़ा जन्म ले चुकी है उसकी दुनिया में ...
दर्द ..चुभन ......काँटे.....शूल ..हमे सब चाहिए ..
भौकने को नोक,...... सुई भी चाहिए .....विजयलक्ष्मी

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