काश! लिख पाते वो शब्द जिनकी चाहत थी,
उनकी सुनने की और मेरी कलम को लिखने की .
कह देते तो सकूं तो आ जाता शायद दिल को ,
न दिया उन्हें करार,न आजादी कलम को लिखने की .
रो लेंगे ये ही बेहतर की दिल टूट जाता उनका ,
उन्हें टूटता देखे कैसे,कसम कलम को न लिखने की.
हर शब्द आग है कैसे कहें हम भी जल रहे है,
वो समझते नहीं औ हम भुगतेंगे सजा न लिखने की.
मेरे दिल को चैन न देना, रब खता की है न लिखने की.- विजयलक्ष्मी
टूटे हुए दिल के सिवा कुछ भी नहीं ....
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