Thursday, 6 September 2012

भुगतेंगे सजा न लिखने की .....





काश! लिख पाते वो शब्द जिनकी चाहत थी,
उनकी सुनने की और मेरी कलम को लिखने की .

कह देते तो सकूं तो आ जाता शायद दिल को ,
न दिया उन्हें करार,न आजादी कलम को लिखने की .

रो लेंगे ये ही बेहतर की दिल टूट जाता उनका ,
उन्हें टूटता देखे कैसे,कसम कलम को न लिखने की.

हर शब्द आग है कैसे कहें  हम भी जल रहे है,
वो समझते नहीं औ हम भुगतेंगे सजा न लिखने की.


मिट जाऊं ये ही अच्छा की वो सम्भल सकें ,
मेरे दिल को चैन न देना, रब खता की है न लिखने की.- विजयलक्ष्मी

टूटे हुए दिल के सिवा कुछ भी नहीं ....

 

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