Thursday, 6 September 2012

एकाक्षरी --दर्द हा रिश्ता

दर्द का अह्सास 
दोस्ती का साथ 
दास्ताँ ए जिंदगी 
दर कदम यादों का साथ चलना 
दारोमदार जिंदगी का 
दया मन में
दरियादिली सागर सी 
दरिया के पाटों सी 
दोनों जुदा मगर है साथ साथ 
दर्द का रिश्ता जोड़ता है 

दो दिलो को
दूरियां अक्सर देती है अहसास
दर्द को दूर करना है खुद से
दयनीयता को
दम निकले तो भी बढ़ना
दीवानगी या पागलपन
दीवारों के भीतर या ..
दरवाजों के बाहर
दुनिया दौलत दाम
दमड़ी का चमत्कार नहीं
दरमियाँ रिश्ते ही
दामन पकड़े रहे
दरकने न पाए ये अहसास सम्भाल .- विजयलक्ष्मी

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