कृषक गा उठता है गीत सुरीले जब मेहनत रंग लती है ,
उसकी मेहनत से बंजर भूमि भी खिल खिल जाती है .
उसकी मेहनत से बंजर भूमि भी खिल खिल जाती है .
खुशियाँ आती है जीवन में जब धरती रंगीं हों जाती ,
खुशियों के बदरा बरसे और धरती उसमे नहा जाती है .
खिले पुष्प भांति भांति के रंगों से सरोबर हों जाती है .
लगता उस दिन बस खुशियों की बारात सजी है ,
शहनाई की मधुर ध्वनि से दुनिया थिरक थिरक जाती है .
-- विजयलक्ष्मी
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