साँझ की बेला की ओर चल दिया सूरज
सच है , दीप साँझ का जला अब .
इबादतगाह भीतर बना अपने सोचना क्यूँ
रहमगर की दुआ भी मिलेगी अब .
पहचानता है तू मुस्तकबिल अपना खूब
शब्द मांगते है तेरा ही असर अब.
घिसी हुयी एडियाँ दिखी ... कलम में बसी है .
काफिला था साथ दिखा है अब .
घर की दीवारें सील आयी थी, मौसम सुखा है
गुनगुना शब्दों को रुबाइयों सा अब .
ख़ामोशी बोलती है सुनी ? क्या कहूँ बता दे
ये शब्द काम के नहीं शायद अब .-- विजयलक्ष्मी
सच है , दीप साँझ का जला अब .
इबादतगाह भीतर बना अपने सोचना क्यूँ
रहमगर की दुआ भी मिलेगी अब .
पहचानता है तू मुस्तकबिल अपना खूब
शब्द मांगते है तेरा ही असर अब.
घिसी हुयी एडियाँ दिखी ... कलम में बसी है .
काफिला था साथ दिखा है अब .
घर की दीवारें सील आयी थी, मौसम सुखा है
गुनगुना शब्दों को रुबाइयों सा अब .
ख़ामोशी बोलती है सुनी ? क्या कहूँ बता दे
ये शब्द काम के नहीं शायद अब .-- विजयलक्ष्मी
waah
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