Monday, 10 September 2012

दुनिया खाक में न मिला बैठे हम ...



  • "खुद को जला लेते हैं हर शाम शमा की  तरह हम ,
    ये अलग बात है चाँद भी खिडकी से झांकता है मेरी ".- विजयलक्ष्मी


"मुखालफत करे तो सजा की दरयाफ्त कर दूँ ,,,
दहलीज के दीप की खातिर चिंगारी भी मांगी है मुझी से ".- विजयलक्ष्मी



"ये नगमा ए मुहब्बत वफा करके भी बेवफा ही रहेगा ....
न धरती मिली अम्बर से आजतलक वो बेवफा है क्या ."- विजयलक्ष्मी



"ये जुनूं ए हदबंदी तोड़ जाती है अनकही सी बातें ,,, 
ये तो अच्छा है कि कैदखाने के दर कि खबर अभी तलक नहीं" .-विजयलक्ष्मी 



"ये नगमा ए मुहब्बत वफा करके भी बेवफा ही रहेगा ....
न धरती मिली अम्बर से आजतलक वो बेवफा है क्या ".- विजयलक्ष्मी



"सुनते आये हैं वक्त बदल देता है ,मरहम भी बनता है वक्त सदा ,,
उस अहसास का करें क्या जो लम्हा लम्हा उस छोर से देता है सदा" .- विजयलक्ष्मी 



"कोई भरम ही हों तो अच्छा है मुहब्बत भी अभी ,
हकीकत बन गयी, दुनिया खाक में न मिला बैठे हम ".- विजयलक्ष्मी



"शान औ शौकत अपनी नामचीन यूँ तो खुद से ज्यादा है मगर ...
बेमुरव्वती औ शौक चर्राया है जाने क्यूँ हमे खुद से ज्यादा मगर ".- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment