Wednesday, 23 May 2012

बोल दे अब ....

भीगे है जब 
तन मन सखी री 
जल तरंग ..

शहनाई सी
गूंजे है मन में भी
लहराए हैं ..

सावन आके
रिमझिम बरखा
तरसाए है ..

सुन बगीचा ..
खिले प्रसून अब
खुशी गाये है ..

तराने मिल
मंजिल से जिसकी
तुम ही हों ..

लगता है क्यूँ
बूंदों में सब नया ..
रम जाऊँ मैं ..

खो जाऊँ अब
सावन के संग आ
बिजली कौंधी ..

जलतरंग सी
बजी क्यूँ मन में है
बोल दे अब ..विजयलक्ष्मी .

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