चल ,ए सफर ! तुझे चलना है अकेले ही निकल ,
बदली तो ठहरी है पलक पर बरस लेने दे सम्भल .
वक्त का इन्तजार क्या ,वक्त हुआ है किसका ,
काँटों से भरे सफर है उन्हें भी चुभ लेने दे सम्भल.
क्यूँ परेशां हुआ जाता है समन्दर की लहरों सा ,
सावन के गीत गा, भौरों को भी गुगुनाने दे सम्भल.
राह अपनी गुजर इन्तजार क्यूँकर दुनिया है ,
मजबूरिया औ सीमायें सबकी अपनी रहने दे सम्भल.
चुप रहना कलम का अच्छा कि कम बोले अब.
तकाजा वक्त ए सिला समझ राह अब चल दे सम्भल.
नादानियां अच्छी नहीं होती मालूम है ये भी ,
किया है गुनाह ,दूर मंजिल के सिले चल दे सम्भल .- विजयलक्ष्मी
बदली तो ठहरी है पलक पर बरस लेने दे सम्भल .
वक्त का इन्तजार क्या ,वक्त हुआ है किसका ,
काँटों से भरे सफर है उन्हें भी चुभ लेने दे सम्भल.
क्यूँ परेशां हुआ जाता है समन्दर की लहरों सा ,
सावन के गीत गा, भौरों को भी गुगुनाने दे सम्भल.
राह अपनी गुजर इन्तजार क्यूँकर दुनिया है ,
मजबूरिया औ सीमायें सबकी अपनी रहने दे सम्भल.
चुप रहना कलम का अच्छा कि कम बोले अब.
तकाजा वक्त ए सिला समझ राह अब चल दे सम्भल.
नादानियां अच्छी नहीं होती मालूम है ये भी ,
किया है गुनाह ,दूर मंजिल के सिले चल दे सम्भल .- विजयलक्ष्मी
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