कविता गुनगुनायेंगे चलो बैठकर...
शब्द आओ खेलो कलम से
कविता गुनगुनायेंगे चलो बैठ कर .
दर्द जो बिखरे पड़े है दरों से
निकल कर, चलें अब उन्हें समेट कर .
आइना सच कैसे बोला ..
छिपा दिया मुझे सूरत तुम्हारी देखकर.
भूल कर कोई भूली हों राह
रख लेंगे उर में समान संग लपेट कर .
ऑंखें खुली रखना मेरी
सफर आखिरी चलें तुम को देख कर. ..
.विजयलक्ष्मी
Bahut sunder rachna..badhai Didi
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