" वो कोई और होंगे चेहरे पे गजल कहने वाले ,
उजला मन चांदनी छलकी तब गजल बनती है
उजला मन चांदनी छलकी तब गजल बनती है
दौलत की दुनिया में सुना है बिकती हैं गजले
रंज की महफिल गरीबों की भूख गजल बनती है
रंज की महफिल गरीबों की भूख गजल बनती है
लबों की लाली पर गजल को न कहना मुझको
लहू बिखरता सरहद पे हौसले की गजल बनती है
लहू बिखरता सरहद पे हौसले की गजल बनती है
बरसती बरसात पर लिखी गजले गजलकारो ने
सहमी वो लडकी दुनियावी निगाहों से गजल लगती है
सहमी वो लडकी दुनियावी निगाहों से गजल लगती है
गजल शब्दों का मकां होता तो शब्दकोश कम कैसे
भीगते हैं अहसास जब दिल के गजल बनती है "--- विजयलक्ष्मी
भीगते हैं अहसास जब दिल के गजल बनती है "--- विजयलक्ष्मी
सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआभार।
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर
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