तान कर चादर सुला दूँ क्या सहर को फिर से
आफ्ताब ने निकलने से गर मना कर दिया है ?
रातों का सफर तन्हा अन्धरें से परेशां है ,
दीप तलक जाने से भी क्यूँ मना कर दिया ?
हैवानियत बढ़ गयी है ,इंसानियत भी नदारत ,
रोशन दिलों को करने से भी क्यूँ मना कर दिया?
कत्ल से परेशां हाल , देख कर दुर्दशा ए वतन,
सजेगी कैसे जन्नत येबता, क्यूँ मना कर दिया ?
सजदे में बैठा हर शख्स गुम है सदमे में सुन ,
खोया है कहाँ छुपगया ,दिखने से क्यूँ मना कर दिया ?
..विजयलक्ष्मी
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