Friday, 6 July 2012

न मालूम ..?

कोई तो है जिसे सुना लेते हों दास्ताँ ,
यहाँ तो कागज भी जल कर राख हूआ जाता है .-विजयलक्ष्मी

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अब तलक मुकद्दर से ही धोखे मिले है बहुत ,
अब तो खुद्दारी का चोला पहन कर मरने की ठानी है .-विजयलक्ष्मी

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आज बहुत दिनों के बाद मुस्कुराने का मन हुआ है,
न मालूम वो मुझको को ज्यादा समझता है या खुद से भी अनजान है ?-विजयलक्ष्मी

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