Monday, 16 July 2012

यही एक कारण

मेरी व्यथा तो,....मैं ही हूँ ,
मेरा कष्ट ..उतरना फलक से तुम्हारा ,
बेकल सी वीणा विकलता है स्वरों मैं , 
खुद में ही बिखरती हूँ पल पल यही एक कारण ...||

समझ में आता नहीं कुछ...
बिखरा हुआ सा हर एक राग है क्यूँ
टूटके है अम्बर जमीं पे आ गया है....
बहती हूँ उन्ही आंसूंओं मैं संग संग यही एक कारण ...||

विरक्ति पुकारे क्यूँ ...
समा जाये धरती कहाँ बिन गगन के ,
छाया है ऐसे सावन का घनघोर बादल ,
बिखरता है मन चटक चटक कर यही एक कारण ...||

रूह का रूह मैं अहसास है कुछ ...
सहर का उजाला सूर्यकिरण बिन होता कहाँ है
स्वप्निल सी दुनिया , नूर किसका समाया है ,
था फलक पे बैठाना ,क्यूँ नीचे उतारा यही एक कारण ...||

इंसान हूँ ,इंसानियत भी है इतनी ...
संताप ने तोडा , पत्थर हूँ अहसास हुआ जब
खुशियों के बदले ,दुःख और कांटे है बांटे क्यूँ हमने
न समझे हों तुम ही ,कोई समझेगा कैसे यही एक कारण ...||विजयलक्ष्मी

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