गुंचा ए गुल खिल के सदा रंगत नहीं देते ,
बढाते हैं दर्द ही अक्सर,यूँ भी दवा नहीं देते .
मेरे चमन से तो यूँभी बहारों को दुष्मनी है ,
खाया है तरस ही वर्ना कांटे भी नहीं देते .
आग ए नफरत ही सही तुममे मौजूद हम हैं,
सोचो , नफरत को भी वर्ना इजाजत ही नहीं देते.
इस उजड़े चमन मैं क्या है तन्हाई के सिवा ,
जुदा कहाँ वर्ना नजरों की रुसवाई भी नहीं देते.
खामोश निगाहें भी अहसास बढाती दिल का
बादर्द पैगाम ए निगाह वर्ना नाराजगी नहीं देते.-विजयलक्ष्मी
बढाते हैं दर्द ही अक्सर,यूँ भी दवा नहीं देते .
मेरे चमन से तो यूँभी बहारों को दुष्मनी है ,
खाया है तरस ही वर्ना कांटे भी नहीं देते .
आग ए नफरत ही सही तुममे मौजूद हम हैं,
सोचो , नफरत को भी वर्ना इजाजत ही नहीं देते.
इस उजड़े चमन मैं क्या है तन्हाई के सिवा ,
जुदा कहाँ वर्ना नजरों की रुसवाई भी नहीं देते.
खामोश निगाहें भी अहसास बढाती दिल का
बादर्द पैगाम ए निगाह वर्ना नाराजगी नहीं देते.-विजयलक्ष्मी
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