सन्नाटे में गीतों की स्वरलहरी उठेगी ...
मेघा बरसता ही नहीं सावन सूख रहा है ,
धरा जल रही है कूद में ही भीतर जख्म भर ही नहीं पाते
तपिश जला रही है हिमालय की गोद उजड रही है..
भागरथी निकल कर बहने लगी है सरहद से ..
वक्त सहमकर खड़ा है फिर ..
उड़ जायेंगे बादल ..मानसून की खबर अच्छी नहीं है ..
कुछ दिन तक बरसात न होगी यहाँ ...सूखे के आसार बन रहे है
सुना है कृष्ण की कर्मस्थली यमुना के किनारे बहुत ही खूबसूरती से बसी है ...
क्या बांसुरी आज भी सुनाई देती है वहाँ ...सुन सकेंगे क्या ..
सन्नाटे में गीतों की स्वरलहरी उठेगी ....
असर दूर दूर तलक होगा ...संगीत सुनेगा जो भीतर बजता है
अंतर्मन में बस जायेंगे वो पल तुम भी सुनना ..महसूस करना .विजयलक्ष्मी
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