मुझे बुत नहीं बनना
हाँ ,मैं बुत नहीं बनना चाहता
मुझे तराशे वो
जो कुछ सुना सके
जिंदगी की राह बता सके
सुनाये अपनी बात
कान धर सके,
मेरे मुँह मैं
जुबान रख सके
कहे जब कहानी ..
दे कोई भी निशानी
मुझमें रसधार बह सके
नैनो मैं उसका
ख्वाब सज सके
एक दिल
वो मुझमे मैं रख सके
रो सकूं दर्द पर उसके
मुझे बुत नहीं बनना,
तराशे मुझे
अपना ख्वाब सा
कुछ आफताब सा
किसी रूह की मानिंद
मैं उसमें बस सकूं,
जी सकूं दर्द मैं
जलधार बन सकूं..
मुझे बुत नहीं बनना
क्या तुम ,शिल्पी हों वही
जो सृजन कर सके
इस पत्थर भी में
जान रख सके..
दे सके साँस एक भी
जिंदगी बहे
कुछ पल ही सही ,
खिला सके पुष्प सा
महज एक मौसम ही सही ,
फिर चलूँ चिंतन सी
चिर निंद्रा की ओर
मुझे बुत नहीं बनना
हाँ ,मुझे बुत नहीं बनना .--विजयलक्ष्मी
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