तू न समझेगा जा बैठ ,तूफ़ान के मर्म को ..
बहुत बार दर्द को भेजा है ,दर मेरा खटखटाने को ..
उन्वान क्या इहलाम भी मजाक लगने लगे ..
बहकते नहीं कदम तैयार क्यूँ हुए सोच जल जाने को..
होने दे सब भस्म ,देह का फितूर है किसे ..
श्रंगार को अंगार बनना है अभी ,बाकी क्या जल जाने को..
क्यूँ समाधि टूट रही है शिव की कह तो जरा ..
क्यूँ सहमी डगर सहर और आफताब की बदल जाने को ..
कौन परीक्षा बाकी है अभी ,सोच कर बोलना..
मौका नहीं है फिर कोई भी वक्त के पास बदल जाने को..
जंगली पौध है बताया था बहकती नहीं है ..
गमलों में जल बराबर डाला है दिया मौका बहुत संवर जाने को .विजयलक्ष्मी
बहुत बार दर्द को भेजा है ,दर मेरा खटखटाने को ..
उन्वान क्या इहलाम भी मजाक लगने लगे ..
बहकते नहीं कदम तैयार क्यूँ हुए सोच जल जाने को..
होने दे सब भस्म ,देह का फितूर है किसे ..
श्रंगार को अंगार बनना है अभी ,बाकी क्या जल जाने को..
क्यूँ समाधि टूट रही है शिव की कह तो जरा ..
क्यूँ सहमी डगर सहर और आफताब की बदल जाने को ..
कौन परीक्षा बाकी है अभी ,सोच कर बोलना..
मौका नहीं है फिर कोई भी वक्त के पास बदल जाने को..
जंगली पौध है बताया था बहकती नहीं है ..
गमलों में जल बराबर डाला है दिया मौका बहुत संवर जाने को .विजयलक्ष्मी
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