Tuesday 31 July 2012

जा मत आ इस देस ...लाडो ...


सोचो तो ...
फिर से जीना पडेगा तुम्हारे संग ..
वो ही एक कड़वा सच ..
जिसके साथ मैं भी बडी सब कुछ ..
बदलने की चाह ..
भारी पड़ रही है और फिर वही ..
कुछ नहीं बदला ..
हाँ तरीके बदल गए है दिखावा है
भीतर से नहीं ..
मर जाओ कोख में ही मेरी तुम अब ..
बेटी के लिए ..
नहीं चाहिए ये जिंदगी ये सोच मुझे ..
मत आ दुनिया में ..
संदेश,उपदेश ,सिर्फ ढंग बदले है ..
असलियत भयावह ..
दहेज नहीं स्टेटस चाहिए लड़की का ..
गोरा रंग मानक ..
सावंली मतलब काली ,जैसे गाली दी हों ..
नौकरीशुदा ही हों ..
घर के काम में माहिर, किसी से बात न करे ..
पर व्यवहार कुशल हों..
पढ़ी लिखी होस्टल में किन्तु सीधी हों
धनवान की बेटी हों ..
ख़ूबसूरती भी अभिशाप होगी तुम्हारी ..
ठहरेंगी नजरे पापी तुमपर ..
मत आओ दुनिया में ..जाओ चली जाओ ..
आभी तलक भी ..नहीं बदली ..
शायद कभी न हों पाए अच्छी दुनिया ये ..
सोच वही न बदली है ..
नहीं चाहिए ...दिखती सी आजादी बस ..
मीठे शब्दों के खंजर ..
एक ऐसा नौकर जो सबकुछ सुने और चुप ..
दर्जा बराबर का ही है ..
असलियत तो जीने वाला जाने साथ सदा ..
ईश्वर को कहना --
खुद बन लड़की दुनिया में जी हिम्मत कर ..
तू लौट जा अब भी
मेरी प्यारी राजदुलारी आंसूं मंजूर मुझे मेरे ..
कैसे पियूंगी तेरे आंसूं ..
न कर जिद आने की पछताना न पड़े दोनों को ..
छोड़ दे जिद अब ..
माँ कुलटा नासपीटी कंगले घर की ठीक सही
पर तू क्यूँ बने ..
और लौट जा ....लौट जा ...परदेस वापिस ..
अंग कटेंगे मंजूर ये दर्द ..
ये कुछ वक्त का दर्द न टीसेगा जीवन भर ..

1 comment:

  1. बहुत खूब ......मार्मिक , दिल को छू लेने वाली कविता ....

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