Sunday, 8 July 2012

ये हौसलों की उड़ान हैं














ये हौसलों की उड़ान हैं मेरे अहंकार की नहीं..

ये हौसलों की उड़ान है ....और बाकी कुछ नहीं 
ये जिंदगी की पहचान है ..किसी ठहराव की नहीं 
ये मंजिलों की जानिब चलती है राहें ..
मौत के मंजर रोक पाएंगे कैसे ..
बढते हौसलों की राहों को ...अ
हंकार क्यूँकर भला और किससे जीत पर ..
साथ चलते हुए कहीं कोई नरमी गर्मी हों भी जाये गर ..
ये इस सफर के दौरान में इतना हक भी नहीं ..
क्या सफर में हरकदम समझोता ही जरूरी है..
क्यूँ देखते हों मुझे विषबेल सी क्या हौसला मैं छोड़ दूँ ..?
बढकर कलम को तोड़ दूँ ?
मेरी मौत बर्दाश्त कर पायेगा ...?
गर रुक गयी कलम भला तो मुझको कहाँ , क्यूँकर पायेगा ..
जब सफर है साथ में ..तन्हाईयाँ लगती है क्यूँ ..
दीप जलता है सदा ..यहाँ एक सजीव सा ..
एक चिरैया कुछ हठी ज्यादा ही है..
खौफ डराता नहीं मौत का ...जाने क्यूँ ललकारता है बस ..
ये हौसलों की उड़ान है ..हाँ ये हौसलों की उड़ान है .--

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