Friday 30 August 2013

दीवानगी क्या बताऊँ...



दीवानगी क्या बताऊँ मस्ताना बना फिरता हूँ 

न हो मुलाक़ात उनसे दीवाना बना फिरता हूँ ,

बेख्याली में अब बारिशों में भीगता फिरता हूँ 

बरसते है बादल जब मस्ताना बना फिरता हूँ 

ख़ामोशी सी छा गयी अनजाना बना फिरता हूँ 
लगाने लगा खुद से ही बेगाना बना फिरता हूँ 

लिखा न जा सके वो अफसाना बना फिरता हूँ
फितरत से आजकल शायराना बना फिरता हूँ .- विजयलक्ष्मी

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