साहित्य का विस्तार बिस्तर तक आ पहुंचा है अब ,
वाह रे वात्सायन शास्त्र महिमा अपार हुयी तुम्हारी
जो रोते थे पतन को देखकर कलम का आजतक
उन्ही खिडकियों पर खड़े ज्ञान चक्षु खोलने लगे हैं हमारी
वाह वाह अद्भुत अद्भुत के सुर उठने लगे चहुओर अब
सडकछाप प्रेम के रंग सुहाते से नजर आने नजर में तुम्हारी
देह की ज्वाला रूह को निगलना चाहती है सरेबाजार नाज था हिन्द को जिनपर तस्वीर उनकी पिघलती जारही .- विजयलक्ष्मी
वाह रे वात्सायन शास्त्र महिमा अपार हुयी तुम्हारी
जो रोते थे पतन को देखकर कलम का आजतक
उन्ही खिडकियों पर खड़े ज्ञान चक्षु खोलने लगे हैं हमारी
वाह वाह अद्भुत अद्भुत के सुर उठने लगे चहुओर अब
सडकछाप प्रेम के रंग सुहाते से नजर आने नजर में तुम्हारी
देह की ज्वाला रूह को निगलना चाहती है सरेबाजार नाज था हिन्द को जिनपर तस्वीर उनकी पिघलती जारही .- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment