Thursday 29 August 2013

अर्थशास्त्री के हाथ में अर्थशास्त्र कैसा ये औजार है

अर्थशास्त्री के हाथ में अर्थशास्त्र कैसा ये औजार है 
लेकिन मेरा प्यारा वतन किया अर्थशास्त्री ने बेकार है ||

भ्रष्टाचार घूसखारों संग घोटालो का वो खरीदार है 
विश्वपटल पर दिवालिया देश का चस्पा समाचार है ||

नीतियाँ रीत गयी औ चुप्पी से हुआ बहुत बेजार है 
आतंकवाद बढ़ रहा खजाना खाली से रंगा अखबार है|| 

सोना बैठा चढकर सिरपर अंधेरगर्दी का व्यापर है 
शेयर बाजार गिरा धडाम छाया कैसा ये अन्धकार है||

किससे करे उम्मीद देश का कैसे होना सुधार है
रुपया गिरा गर्त में डालर को कीमत का उपहार है ||- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment