Monday 5 August 2013

बरगद का पेड़ ....

बरगद का पेड़ ....
देखा है न 
जमीं पर हरियाली नहीं छोड़ता 
जहां खड़ा हो जाता है 
जो अपनी ही प्रजाति अपने वंश को खुद कभी संरक्षण नहीं देता .
..हजारो पंछी बैठते हैं उसपर ...
लेकिन कोई वृक्ष उसके नीचे नहीं पनपता .
.कैसी विशालता है ये ..

कैसा जूनून है ये ..
दुनिया को बसेरा ..
अपने घर में अँधेरा ..
हाँ ...सच बात है वही बरगद का पेड़ 
झूला भी डलता है जिसपर 
पूजनीय अन्यों के द्वारा .
घनी छाँव भी मिलती है जिसकी 
नहीं मिलता तो स्व को संरक्षण
अपनी वंशावली का विनाशक 
जाओ तपो ...
जिन्दा रहने की कुव्वत पैदा करो 
बचा सकते हो तो बचालो अपना अस्तित्व ..
अन्यथा ...
यहाँ तुम्हारे लिए सहारा नहीं है 
जाओ मरो ..
सम्भालो अस्तित्व अपना 
स्वरक्षित युद्धरत रहो..
"तुम भी अब" ..!!
- विजयलक्ष्मी

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