" माँ ...तुम सूरज सा थी ताप लिए ...
.......रोशन करती मेरी दुनिया ...
माँ ...चाँद बनी धरती का तुम ही
माँ ...मन शीतल कर जाती हों ..
माँ ..पहली सीख तुम्हारी मुझको
माँ ...प्रेम का पाठ सिखाया है
माँ ...मैं नादाँ चलना भी सिखलाया है
माँ ..खुला समुन्द्र दुनिया सारी
......लहर लहर उठना सिखलाया
माँ ..खुला समुन्द्र दुनिया सारी
......लहर लहर उठना सिखलाया
माँ ....मैं और तू .....कैसे भला जुदा हैं ,"- विजयलक्ष्मी
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