Wednesday, 14 August 2013

आदर्श ..कौन से किस लिए आखिर क्यूँ ..

आदर्श ..कौन से किस लिए आखिर क्यूँ ..
आदर्श वाक्य अपने देश पर कभी लागू नहीं होते
महंगाई भ्रष्टतंत्र से पोषित होती है 
चलते हैं सभी तंत्र यहाँ भ्रष्ट नेताओं की राजनीति से 
राजनीति मंहगाई या भ्रष्टाचार का मुद्दा कैसा मिथ्या करुण रोदन की कहानी पर चलती है ,
तब न वोटर हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, बौद्ध, जैन ही होते हैं
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, भी वोटर ही होते हैं....
नतीजा मंहगाई...डायन खा रही है
मंहगाई बिना धर्म, जाति पूछे जान निकालती है .
गहन अज्ञान ही अज्ञान है अँधेरा ही अँधेरा
देश का जनता का असली दुश्मन छद्म धर्मनिरपेक्षता है....
जातिगत राजनीति है...
उखाड़ कर फेंक क्यूँ नहीं देते इस गन्दी विचारधारा का चेहरा ...
शहीदों का बहता खून भेदभाव नहीं करता कभी
राजनीति के लिए तो जात -पांत तुरुप का है इक्का
बिना हिन्दू -मुस्लिम और दलित कार्ड के चुनाव नहीं जीता जा सकता है
सम्भल जाओ अभी वक्त है वोट को व्यर्थ न गंवाओ
पांच सौ रूपये एक सूट उया सदी बोतल में न बेच आओ ...
अपना हाथ जगन्नाथ ..वोट अपनी खुद ही डालकर आओ
न तुम बिकोगे न वतन बिकेगा ..
देश का स्वाभिमान भी बचेगा और धन भी बचेगा भ्रष्टाचार औंधे मुहं गिरेगा
.- विजयलक्ष्मी

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