कुछ सन्नाटे ऐसे भी हैं ,भीतर भीतर ही रिसते हैं ,
तपिश क्या जलाकर राख करके भी नहीं मिटते हैं .- विजयलक्ष्मी
शायद ,अब नहीं सताएगी तन्हाई न अहसास रुलायेंगे ,
सीख रहे हैं खुद को बहलाना किसी रोज सीख भी जायेंगे .- विजयलक्ष्मी
पिंजरे के पंछी से पूछे गये हैं सवाल
पंख कतरे अब बताओ गगन का हाल .- विजयलक्ष्मी
वक्त की आंच इतनी न जला खुद को जला डाले ,
मजा तब है ,जो वतन जला रहे है उन्हें जला डाले .- विजयलक्ष्मी
तपिश क्या जलाकर राख करके भी नहीं मिटते हैं .- विजयलक्ष्मी
शायद ,अब नहीं सताएगी तन्हाई न अहसास रुलायेंगे ,
सीख रहे हैं खुद को बहलाना किसी रोज सीख भी जायेंगे .- विजयलक्ष्मी
पिंजरे के पंछी से पूछे गये हैं सवाल
पंख कतरे अब बताओ गगन का हाल .- विजयलक्ष्मी
वक्त की आंच इतनी न जला खुद को जला डाले ,
मजा तब है ,जो वतन जला रहे है उन्हें जला डाले .- विजयलक्ष्मी
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