तेरे अहसास में जिए जाते हैं साँस दर साँस ,
पुकारती है तेरा नाम जैसे दिल ही निशाना है .
धडकनों का क्या कहूं दगा देने लगी मुझको,
बसती है मुझमे लहू में मगर तेरा ठिकाना है .
ये कदम चलते है तेरी जानिब हर लम्हा क्यूँ ,
भूले डगर घर की अपने जैसे देश बेगाना है .
वो कौन सहर मुकम्मल तुम बिन हुयी मेरी ,
चले आओ तुम दिल में बनाया आशियाना है.
खामोश रहे जुबाँ तो नजर बोलती है तुम्हारी
उठकर गिरती पलकों का अंदाज शायराना है .- विजयलक्ष्मी
पुकारती है तेरा नाम जैसे दिल ही निशाना है .
धडकनों का क्या कहूं दगा देने लगी मुझको,
बसती है मुझमे लहू में मगर तेरा ठिकाना है .
ये कदम चलते है तेरी जानिब हर लम्हा क्यूँ ,
भूले डगर घर की अपने जैसे देश बेगाना है .
वो कौन सहर मुकम्मल तुम बिन हुयी मेरी ,
चले आओ तुम दिल में बनाया आशियाना है.
खामोश रहे जुबाँ तो नजर बोलती है तुम्हारी
उठकर गिरती पलकों का अंदाज शायराना है .- विजयलक्ष्मी
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