परम्परा और संस्कार संग लेकर नव सृजन से .....
आऔ मिलकर दीप जलाएं ...
नवगृह पूजन करके कर सुरक्षित सभी दिशाएं ,
सम्पूर्ण ब्रम्हांड में समाया आदिदेव कहलाये ,
गगन धरा से मिलकर अपनी दुनिया बन जाये ,
मन के भीतर पसरा शून्य किसको बोला जाए ,
इन्द्रधनुषी खिल उठे धरा जो सूर्य किरण मिल जाये ,
सम्पूर्ण जगत के कर्ताधर्ता त्रिदेव कहलाये ,
चले भवानी रूप लिए जब ,देव सभी झुक जाये ,
लौट राम अवध को आये माताओं के मन हुलसाए ,
दीप से दीप जलाकर पुरजन क्यूँ न खुशी मनाये ,
आओ मिलकर दीप जलाये ...
उजियारा फैले धरा पर अंधकार न रह जाये ,
सूर्यपथ पर सूर्यकिरण संग सूर्य की चाह धरा को रोशन जाये ..--विजयलक्ष्मी
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