दीवानगी सबकी अपनी अपनी है
किसी को धन से किसी मन से है
किसी को प्रेम है देह का निखालिस
किसी की कुर्बानी अपने वतन पे है
कोई उपवन सजाता है इन्द्रधनुषी
किसी को नफरत ही मेरे चमन से है
दुआ भी बद्दुआ सी नजर आने लगी
लेकर कभी बंदूक डराता बम से है
सरहद पर मौत का खौफ क्यूँ अब
कफन बांधकर चलते है मतवाले मैदान ए जंग में
वो नहाते कब है होली के कच्चे रंग में
केसरिया बाना और तिरंगा जिन्हें भाता है
उनके सांसों को ख्याल भी वही महकाता है
मुहब्बत के रंग कितने है कही लैला से किस्से
कही लक्ष्मीबाई की रंगीन जिन्दगी
प्रताप की तलवार ,कही शिवाजी को सिखाई जीजाबाई ने ईमान की बन्दगी
कहीं रक्त से व्याकुल अशोक तलवार को फेंक देता है
कही राजपाठ को त्याग गौतम बुद्ध बन बैठा
कभी जन्म लेते है सुभाष से वीर धरती पर
कही सुखदेव भगत बटुकेश्वर झूलते है जीवन के झूले पर
दीवानगी ये भी है चुपचाप विष पीकर भी मीरा मरती नहीं है
राधा रंग में रंगकर भी मुलाकात श्याम से करती नहीं है
उलटे रंग भी बहुत भ्रष्टाचार से प्यार है जिन्हें कतार कम होती कब है
खाद्य सुरक्षा हो रही किसी और की जिससे मौत मुकर्रर हुयी किसान की
किस्सा ए दीवानगी बिखरे पड़े हैं
हर शब्द हर गली कूचे में निखरे पड़े हैं
सूरज की दीवानगी जलता है गगन में
और चन्द्रमा घटता बढ़ता है जाने कौन से विरह मिलन में .- विजयलक्ष्मी
किसी को धन से किसी मन से है
किसी को प्रेम है देह का निखालिस
किसी की कुर्बानी अपने वतन पे है
कोई उपवन सजाता है इन्द्रधनुषी
किसी को नफरत ही मेरे चमन से है
दुआ भी बद्दुआ सी नजर आने लगी
लेकर कभी बंदूक डराता बम से है
सरहद पर मौत का खौफ क्यूँ अब
कफन बांधकर चलते है मतवाले मैदान ए जंग में
वो नहाते कब है होली के कच्चे रंग में
केसरिया बाना और तिरंगा जिन्हें भाता है
उनके सांसों को ख्याल भी वही महकाता है
मुहब्बत के रंग कितने है कही लैला से किस्से
कही लक्ष्मीबाई की रंगीन जिन्दगी
प्रताप की तलवार ,कही शिवाजी को सिखाई जीजाबाई ने ईमान की बन्दगी
कहीं रक्त से व्याकुल अशोक तलवार को फेंक देता है
कही राजपाठ को त्याग गौतम बुद्ध बन बैठा
कभी जन्म लेते है सुभाष से वीर धरती पर
कही सुखदेव भगत बटुकेश्वर झूलते है जीवन के झूले पर
दीवानगी ये भी है चुपचाप विष पीकर भी मीरा मरती नहीं है
राधा रंग में रंगकर भी मुलाकात श्याम से करती नहीं है
उलटे रंग भी बहुत भ्रष्टाचार से प्यार है जिन्हें कतार कम होती कब है
खाद्य सुरक्षा हो रही किसी और की जिससे मौत मुकर्रर हुयी किसान की
किस्सा ए दीवानगी बिखरे पड़े हैं
हर शब्द हर गली कूचे में निखरे पड़े हैं
सूरज की दीवानगी जलता है गगन में
और चन्द्रमा घटता बढ़ता है जाने कौन से विरह मिलन में .- विजयलक्ष्मी
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