कलम से..
Wednesday, 21 August 2013
है आज भी उसी नदी के बीच
नदी बहती रही तटों के बीच
संग बिन पतवार नाव थी
खाती थी हिचकौले
मगर लहरों पर सवार थी
टूटे पत्थरों की चोट से घायल भी बहुत
सुरत रुकने की मगर नागंवार थी
है आज भी उसी नदी के बीच
जिसमे बहती अहसास की जलधार थी
.- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment