भारत निर्माण किधर ,बैठा कौन से उच्च शिखर ,
रुपया नीचे गिरा गर्त में, स्वर्ण बैठा सर चढकर ||
ईमान का बाजार हिमवत से चला समन्दर पास ,
चील झपट्टा का खेल है भैंस उसी की जो बलधर ||
भ्रष्टाचार बनी पद का खेल इल्जाम लगाये घूसखोरी ,
जागरूकता बेहाल पड़ी, डंडे की मार टूटी फूटी डगर ||
बिकती नारी ,जनता से गद्दारी नेता संत व्यभिचारी ,
क्या है यही निर्माण देश का ,मुश्किल में पड़ा सफर ||
रोती जनता मरता किसान देश की लुटती अस्मत है ,
किस्मत कहूं इसे या नशा सत्ता का बोलता सर उपर || .- विजयलक्ष्मी
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