Sunday, 4 August 2013

क्या यही नियति है..

धरती की आवाज आसमान को नहीं बेध सकी ,
इसीलिए आसमान चुप है सदा की तरह 
धरती चीखकर जब पागल हो जाती है 
उसे जब अहसास हो जाता है आसमान नहीं सुनेगा उसकी बात ,,
या अनसुनी कर रहा है सदियों से ..
वो जवाब नहीं देता आखिरी वक्त तक भी 
टूटने लगती है रिसकर ..
बह जाती है बहुत दूर तक 
बिखरने लगती है 
फट पडती है खुद पर ही ,,बेतरह ,
और फिर खुद को समेटने लगती है खुद में धीरे धीरे
उसे मालूम है आसमान न बोलेगा लेकिन
टूटता है भीतर भीतर
बिखरता है देखकर ..
और समेट लेता है खुद को खुद के अंदर ही
चुपचाप ..
गिर पड़ते है कुछ जलकण ढुलककर
यूँही अनायास ही ..
एक बात पूछूं ...जवाब दोगे...?
क्या यही नियति है
.- विजयलक्ष्मी

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