जयहिंद ||
" आजकल सत्य की आड़ में झूठ की बाड़ है ,
भारत शांति का पुजारी,करता पड़ोसी राड़ है."---- विजयलक्ष्मी
" देश तिरंगे का है या तिरंगा देश का
तिरंगा फहरता है बखानता है आन को ,
तिरंगा फहरता है दर्शाता है शान को
तिरंगा फहरता है दिखाता है मान को
तिरंगा वतन की पहचान है ,,
तिरंगा कागज का हो या खादी का तिरंगा है
तिरंगा लालकिले पर फहरे या सरकारी दफ्तर में तिरंगा है
तिरंगा मकान पर ठहरे या दूकान पर तिरंगा है
तिरंगा किसी एक धर्म का नहीं ..तिरंगा छूता किसके मर्म को नहीं
तिरंगे का धर्म राष्ट्रीयता है हमारी
तिरंगे का मर्म कर्मण्यता है हमारी
तिरंगे का कर्म स्वतंत्रता है हमारी तिरंगे की चाह गगन तक फहराना है हमारी
तिरंगे की राह उत्थान की हमारी
तिरंगे में मैं भी हूँ तुम भी हो ..
तिरंगा जन गण का मन है
तिरंगा राष्ट्रीयता का जीवन है
तिरंगा हमारा अंतर्मन है
तिरंगा वेद है पुराण है तिरंगा ही क़ुरान है
तिरंगा देश की वाणी है ..तिरंगा जन कल्याणी है
तिरंगा कर्मयोग का मर्म है
तिरंगा ही हमारा पहला और अंतिम धर्म है "-------- विजयलक्ष्मी
स्वतंत्रता दिवस ...
संजीदा बहुत हों चुके ..किसने कहा ये
जवान खो चुके हम सच हुआ अभी ये
सपूत देश के कीमत जान से लुटा रहे है
नेता देश के घोटालों का खा रहे हैं
सत्य का ढिंढोरा सभी पीट रहे है ,अकेले अकेले ...
गिन रहे है बैठकर कमियां ही कमियां हम भी ..
कुछ देर मिलकर एक आवाज बना ली जाये ..
बहुत बोलते है आगे आगे बढकर संगी साथी ..
वन्देमातरम सी एक तान उठाली जाये ..
आओ हम भी गुनगुनाले अब गीत वतन का ..
मुस्कुरा उठे वो देशभक्त नाज से ,जिन्होंने जाँ लुटा दी ..
गाते रहे वो हरदम गीत वतन के निराले ..
सबने ही मिलकर चोले.... केसरिया रंग डाले ..
याद करके उनको ...हम भी महसूस करलें ..
मिट गए वतन पर जो बेटे हुए वतन के ..
कमियों को छोड़ थोडा उनको भी गुनगुना लें ...
नब्बे वर्ष लड़ कर आजादी हमने पाई ...
कीमत बहुत भारी हर घर ने है चुकाई ..
कुछ नाम याद में है ...उनको क्या कहोगे ...
बेनाम जिन्होंने शाहदत लिखाई ..- विजयलक्ष्मी
भारत की सिसकियाँ सुने कौन ,
कर्णधार देश के हुए मौन
कुछ विदेशियों ने फांसी चढ़ा दिए ,,
कुछ इतिहास ने आतंकवादी दिखा दिए .
सत्ता के पुजारियों ने जनता के स्वर दबा दिए
बचेगा क्या बाकि ...चंद रुपयों में वोट बिकवा दिए
रोटी को मोहताज आज रोता मिला देश ,,
नेता बोलता है ,,हमने घर लुटवा दिए "--- विजयलक्ष्मी
..
""ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी ..
जो शहीद हुए है उनकी तुम याद करो कुर्बानी ..
जय हिंद ...जय हिंद की सेना ...""
" आजकल सत्य की आड़ में झूठ की बाड़ है ,
भारत शांति का पुजारी,करता पड़ोसी राड़ है."---- विजयलक्ष्मी
" देश तिरंगे का है या तिरंगा देश का
तिरंगा फहरता है बखानता है आन को ,
तिरंगा फहरता है दर्शाता है शान को
तिरंगा फहरता है दिखाता है मान को
तिरंगा वतन की पहचान है ,,
तिरंगा कागज का हो या खादी का तिरंगा है
तिरंगा लालकिले पर फहरे या सरकारी दफ्तर में तिरंगा है
तिरंगा मकान पर ठहरे या दूकान पर तिरंगा है
तिरंगा किसी एक धर्म का नहीं ..तिरंगा छूता किसके मर्म को नहीं
तिरंगे का धर्म राष्ट्रीयता है हमारी
तिरंगे का मर्म कर्मण्यता है हमारी
तिरंगे का कर्म स्वतंत्रता है हमारी तिरंगे की चाह गगन तक फहराना है हमारी
तिरंगे की राह उत्थान की हमारी
तिरंगे में मैं भी हूँ तुम भी हो ..
तिरंगा जन गण का मन है
तिरंगा राष्ट्रीयता का जीवन है
तिरंगा हमारा अंतर्मन है
तिरंगा वेद है पुराण है तिरंगा ही क़ुरान है
तिरंगा देश की वाणी है ..तिरंगा जन कल्याणी है
तिरंगा कर्मयोग का मर्म है
तिरंगा ही हमारा पहला और अंतिम धर्म है "-------- विजयलक्ष्मी
स्वतंत्रता दिवस ...
संजीदा बहुत हों चुके ..किसने कहा ये
जवान खो चुके हम सच हुआ अभी ये
सपूत देश के कीमत जान से लुटा रहे है
नेता देश के घोटालों का खा रहे हैं
सत्य का ढिंढोरा सभी पीट रहे है ,अकेले अकेले ...
गिन रहे है बैठकर कमियां ही कमियां हम भी ..
कुछ देर मिलकर एक आवाज बना ली जाये ..
बहुत बोलते है आगे आगे बढकर संगी साथी ..
वन्देमातरम सी एक तान उठाली जाये ..
आओ हम भी गुनगुनाले अब गीत वतन का ..
मुस्कुरा उठे वो देशभक्त नाज से ,जिन्होंने जाँ लुटा दी ..
गाते रहे वो हरदम गीत वतन के निराले ..
सबने ही मिलकर चोले.... केसरिया रंग डाले ..
याद करके उनको ...हम भी महसूस करलें ..
मिट गए वतन पर जो बेटे हुए वतन के ..
कमियों को छोड़ थोडा उनको भी गुनगुना लें ...
नब्बे वर्ष लड़ कर आजादी हमने पाई ...
कीमत बहुत भारी हर घर ने है चुकाई ..
कुछ नाम याद में है ...उनको क्या कहोगे ...
बेनाम जिन्होंने शाहदत लिखाई ..- विजयलक्ष्मी
भारत की सिसकियाँ सुने कौन ,
कर्णधार देश के हुए मौन
कुछ विदेशियों ने फांसी चढ़ा दिए ,,
कुछ इतिहास ने आतंकवादी दिखा दिए .
सत्ता के पुजारियों ने जनता के स्वर दबा दिए
बचेगा क्या बाकि ...चंद रुपयों में वोट बिकवा दिए
रोटी को मोहताज आज रोता मिला देश ,,
नेता बोलता है ,,हमने घर लुटवा दिए "--- विजयलक्ष्मी
..
""ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी ..
जो शहीद हुए है उनकी तुम याद करो कुर्बानी ..
जय हिंद ...जय हिंद की सेना ...""
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