बिखरा सा सावन है बिखरा सा मन है आज मेरा ,
ख्वाब तेरे नाम का संवर जाये तो कोई बात बने ||
हथेली पर तेरे नाम की मेहँदी सजाने का मन है ,
पैगाम वही , होठों पे संवर जाये तो कोई बात बने ||
बेसाख्ता आरजू तेरी समाया हर अहसास तुझी में
दर्पणमन पर तस्वीर संवर जाये तो कोई बात बने ||
उजड़ा सा सहरा मन तुम बिन आहसास नहीं मिटते
बन गुल आंगन का संवर जाये तो कोई बात बने ||
कैसे कहे जिन्दा है,मौत भी नहीं आती तुम बिन ,
अब तेरे आने की ही खबर आये तो कोई बात बने || .- विजयलक्ष्मी
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