चलो मुस्कुराते है पाकीजगी से ,
जो कम न हो किसी बन्दगी से
शायद खुशिया नसीब हो जाये
जिनकी तमन्ना रही जिन्दगी से
मोल में अनमोल किन्तु टका लगे न
औ उम्र उनकी लम्बी हो जिन्दगी से
पैसे में बिकी जो पल का नहीं भरोसा
खो रही ख़ुशी हैं खौफ ए दरिंदगी से
संकरी सी शायद उम्मीद की गली हो
मगर सहर के सूरज सा मिलना तुम जिन्दगी से .- विजयलक्ष्मी
जो कम न हो किसी बन्दगी से
शायद खुशिया नसीब हो जाये
जिनकी तमन्ना रही जिन्दगी से
मोल में अनमोल किन्तु टका लगे न
औ उम्र उनकी लम्बी हो जिन्दगी से
पैसे में बिकी जो पल का नहीं भरोसा
खो रही ख़ुशी हैं खौफ ए दरिंदगी से
संकरी सी शायद उम्मीद की गली हो
मगर सहर के सूरज सा मिलना तुम जिन्दगी से .- विजयलक्ष्मी
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