Tuesday, 29 May 2012

क्या पूछते हों मेरी कहानी ..


क्या पूछते हों मेरी कहानी ..
ख्वाबों की दुनिया की युवरानी ..
हकीकत मगर कुछ बदल सी गयी है ..
तस्वीर नंगे पांव चल रही है
न तन पे है कपड़े ढक ले जो सारा ..
वहशी दरिंदे पढे रोज सारा ..
लालसा वासना की नजरों में है बस्ती बनी उनकी ..
पक्के मकां और हथिया भी है ..
भूखे मगर संग होशियार भी ..
नोंचते है नजर से ही लहुलुहान कर दें
मौका मिले तो ईमान हर दें
मिला ही क्या खारों से अलग कुछ..
नम है जमीं इन्तजार बसाया है ..
दर को मेरे क्यूँ खटखटा कर आया
हाँ इन्तजार रहता है जाने क्यूँ अब ..
नग्न पाँव हम चल ही दिये है संग तुम्हारे
कानून किसका हुआ अंकशायिनी बन ..
दरोगा बिका ..उधेड़ डाली उसने दुनिया ..
बता किसका अब मैं एतबार करलूं ..?
खोजती नजर है देह को मेरी ..
आत्मा का बता कैसे इलाज करलूं
आवाज मेरी सुनाई जो दे तो कौन से एहसास बाकी मैं भर लूं ..
तप्त हूँ संतप्त हूँ ...मौन तेरा समाया है मुझमे ..
सन्नाटा बिखरने लगा है अब मेरे पास ..
शब्द बोने है जो बोलते हों ..
गर सुन सको..... तो तुम बताना
एक इलाज अब मेरी समझ है आया है ....
कानून को बस अपना बना लूं हथियार अब हाथों में उठा लूं..
तलवार कटार पुराने हए है ..हाथों में अपने शोले उगा लूं ..
और ...उतार दूँ घाट मौत के जिन्होने श्मशान तन को बना डाला
कर दूँ इहलीला ही समाप्त ...न होगा बांस न फिर बांसुरी ही बजेगी
किसी को लड़की की चिंता न रहेगी ...
रखवाले जब भक्षक बनेगें यही रूप अब हमको धरने पडेंगे
बोल अब कुछ तो बोल ...
या मैं ही गलत हूँ ....शायद ...?? --विजयलक्ष्मी
 

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