Monday 17 September 2012

बीतराग मेरे मन का ...



प्रति पल क्यूँ यादों के झूलें पेंग बढा देते ..
प्रति पल हम दृग उनसे ही क्यूँ उलझा लेते ..
है प्रतिबिम्बित वही चेहरा आज तक भी ...
किरणों में सूरज की क्यूँ खुद को है पा लेते .
मन का द्वंद समझ न आया बस प्रति पल ..
अपने को भावों में संग तेरे ही उलझा लेते .
तेरे नैना दर्पण बन मुझसे ही बातें करतें ..
बीतराग मेरे मन का, तेरे नाम है लिख देते .--विजयलक्ष्मी

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