एक ब्लॉग पढ़ा उसपर एक रचना और रचना को रवानी देती एक कहानी ...समझ नहीं आ रहा उसकी बुराई लिखूं या अच्छाई ...सम्भव है कोई और भी विशेष परिस्थतियों में आत्महत्या कर लेता लेकिन ...कुछ है कि गले नहीं उतर रहा ..या तो मेरा लेखन और मेरे अहसास उसे कमतर पा रहे है या मुझे आत्महत्या समाधान नहीं लगता ...क्यूँ अपनी जिम्मेदारी छोडकर मरना ...यदि मरना है तो उन जिम्मेदारियों को लेकर मरना चाहिए ...जिन्दा छोड़ना है तो स्पष्ट कहकर ...घर से भेजकर अकेले आत्महत्या का निर्णय ....अन्य सदस्यों को मौत से बदतर जिन्दगी देकर उनके साथ भी दगा करना है और मौत और जिन्दगी से भी ...अनायास ही कलम ने कुछ पंक्तियाँ लिख डाली आप सबसे साझा कर रही हूँ ...(पत्नी और एक बच्चा ...उसके मा के घर भेज खुद आजाद हुआ लटकने को ...कायरता या समाधान !! )....एक बार धनवान होने पर हम छोटे काम को क्यूँ नहीं स्वीकारकर पाते ...ये अहंकार है या जमीर ?
मौत ही बुलानी थी गर सबको ही मार डालता
बोझ जिन्दगी का अपनी किसी और पर न डालता
डरपोक कायर ही रहा भूल गया था गर जूझना
सोचा नहीं कैसे यतीम जीवन पालेंगे अपना
कैसा था इंसान वक्त की आँखों में आंख मिलाता
बैठ वक्त की छाती पर फिर आगे कदम बढ़ाता
माना सगरी बात है सच्ची झूठ नहीं है कुछ भी
फिर भी मन नहीं मान रहा है बात बहुत है कडवी
खुद को मारने वाला खुद नहीं मरता अकेला कभी
देता है मौत से बढकर जीवन जिन्दा जितने सभी
ये हक दिया किसने उसे क्या खुदा वो हो गया
खुद को मारना कहो गुनहगारी से कैसे जुदा वो हो गया .---विजयलक्ष्मी
मौत ही बुलानी थी गर सबको ही मार डालता
बोझ जिन्दगी का अपनी किसी और पर न डालता
डरपोक कायर ही रहा भूल गया था गर जूझना
सोचा नहीं कैसे यतीम जीवन पालेंगे अपना
कैसा था इंसान वक्त की आँखों में आंख मिलाता
बैठ वक्त की छाती पर फिर आगे कदम बढ़ाता
माना सगरी बात है सच्ची झूठ नहीं है कुछ भी
फिर भी मन नहीं मान रहा है बात बहुत है कडवी
खुद को मारने वाला खुद नहीं मरता अकेला कभी
देता है मौत से बढकर जीवन जिन्दा जितने सभी
ये हक दिया किसने उसे क्या खुदा वो हो गया
खुद को मारना कहो गुनहगारी से कैसे जुदा वो हो गया .---विजयलक्ष्मी
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (20.02.2014) को " जाहिलों की बस्ती में, औकात बतला जायेंगे ( चर्चा -1530 )" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें, वहाँ आपका स्वागत है, धन्यबाद ।
ReplyDelete"आत्महत्या समस्या का समाधान नहीं है"-http://kumar651.blogspot.ae/2014/01/blog-post_12.html
ह्रदय तल से आभार की आप ब्लॉग लिंक तक पुहंचे। आप सभी गुनीजनों को सविनय आमंत्रित करता हूँ ।
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ती से आपने कथा के पात्र के प्रति सकारत्मक रुख दिखाया ।
बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर । पुन: निमन्त्रण
http://anurag-trivedi.blogspot.in/2014/02/blog-post.html?m=1
एक सार्थक प्रयास किया है। अंतरिम बजट के आते ही प्रेरणा मिली। सब जानते हैं बजट से कितनों की आशाएं और ढेर अपेक्षायें जुडी होती हैं। चाहे अनपड किसान हो या डिग्री लादे हुए देश का भावी युवा या वो प्रोढ़ वर्ग जो पेंशन की राशी से जीवनयापन करता है । सबकी बृहद रूपेण आव्श्याक्ताओं पर बजट का प्रभाव होना सम्भावित होता है।
एक अलग तरह का प्रयास जो आपकी प्रोत्साहन टिप्पणी की प्रतिक्षा कर रहा।
अनुछुआ न रह जाए कृपा समय शीघ्र निकालिए।
सार्थक लगे तो मित्रों से साझा कर प्रोत्साहन दीजियेगा भाव को ।
सादर !
सविनय...
अनुराग
बेहतरीन .......
ReplyDeleteकितनी बार आत्महत्या करनी होगी,जीवन सदैव ही चुनोती पूर्ण है.
ReplyDeleteसत्य को स्वीकारती रचना.
मंथन योग्य विषय...
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