" मैं फरिश्ता नहीं हूँ ,,
इन्सान हो नहीं सकता ..क्यूंकि
उसके लिए शर्त है जिन्दा होना
मुर्दा होता तो सड़ चूका होता ये तन
बस पुतला हूँ .. एक
हाडमांस का ...दीखता हूँ जिन्दा सा
दफन हो चूका हूँ कब्र में अपनी
वक्त आने दो ...
चार कंधो पर लेजाकर आखिरी विदा तो ...आग पर ही होगी
क्यूंकि अभी धर्म नहीं बदला हमने ".---- विजयलक्ष्मी
इन्सान हो नहीं सकता ..क्यूंकि
उसके लिए शर्त है जिन्दा होना
मुर्दा होता तो सड़ चूका होता ये तन
बस पुतला हूँ .. एक
हाडमांस का ...दीखता हूँ जिन्दा सा
दफन हो चूका हूँ कब्र में अपनी
वक्त आने दो ...
चार कंधो पर लेजाकर आखिरी विदा तो ...आग पर ही होगी
क्यूंकि अभी धर्म नहीं बदला हमने ".---- विजयलक्ष्मी
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