गुल बदनाम हो गये हर कही ये रंग औ जमाल क्या मिला ,
काँटों की चुभन सी नजर मिली हुस्न औ कमाल क्या मिला .
भरोसा ही उठ गया जरा नाजुक मिजाजी के ख्याल भर से
चीर के रख दे जिगर, अहसास ए तमाम ख्याल क्या मिला .
खंजर न तलवार की जरूरत है तिश्नगी बहुत है तुम्हारी यूँभी
कुफ्र ए खुदाई में खौफ ए कुदरत का बता सवाल क्या मिला .
रंज क्यूँ है जहर देदो न बरसोगे तो भी फ़ैल जायेगा रगों में
मिट जायेगा हर अफ़सोस न सोच तुफान ए बबाल क्या मिला .
दिया जो राह में था कही ,इतना ही बहुत तेरी देहलीज पे जला
बता न सकेंगे तुझसे मिलके हम ,न पूछ ये सवाल क्या मिला .- विजयलक्ष्मी
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