Wednesday, 12 June 2013

दर्द ए सुकूं है गर तुझे तो मातम सा क्यूँ है बता




















तेरी ख़ूबसूरती में रंग ए लहू कितना है बता ,
तू बना जिस वफा से वो रंग ए वफा तो दिखा 

मजलूमों की रंग ए बद्दुआ चढ़ा कितना है बता ,
क्यूँ तुझसे मुहब्बत भी रहती है खफा वो दिखा 

क्यूँ दर्द की चादर चढ़ी है जहां में तेरे नाम बता,
चैन औ खुलूस आया है कितना हिस्से वो दिखा

चीखों का हिसाब लिखा क्या तुमने वो नाम बता,
चेहरों को खिलाया हो हकीकत कोई शाम तो दिखा .

दर्द ए सुकूं है गर तुझे तो मातम सा क्यूँ है बता
रगों में जमा लहू आब किया जिसने, नाम तो दिखा
.- विजयलक्ष्मी 

No comments:

Post a Comment