जख्म खाकर भी नहीं रूकती
चलना जानती हूँ
थकना किसे कहते हैं नहीं मालूम ...
वक्त के थपेड़े सहकर भी
रूकती कब हूँ ..
जिन्दगी हूँ
मौत ही है आखिरी बसेरा
जख्म खाकर भी नहीं रूकती
चलना जानती हूँ
कदम ले चले जिस गन्तव्य की तरफ
किनारे की तलाश है किसे
रूकती कब हूँ
जिन्दगी हूँ
मौत ही है आखिरी बसेरा .- विजयलक्ष्मी
चलना जानती हूँ
थकना किसे कहते हैं नहीं मालूम ...
वक्त के थपेड़े सहकर भी
रूकती कब हूँ ..
जिन्दगी हूँ
मौत ही है आखिरी बसेरा
जख्म खाकर भी नहीं रूकती
चलना जानती हूँ
कदम ले चले जिस गन्तव्य की तरफ
किनारे की तलाश है किसे
रूकती कब हूँ
जिन्दगी हूँ
मौत ही है आखिरी बसेरा .- विजयलक्ष्मी
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